"जवानी गुज़री पर्दे में"
जवानी गुज़री पर्दे में, ज़ुल्म पे बुढ़ापा,
बची नहीं अब कोई भी निशानी,
अच्छा बुरा, सही ग़लत इन्हीं दो लोगों से होते हैं
एक वो मर्द और जनानी।।।
गलियों में महफूज़ नहीं, इसक़ात से डर लगता है,
ग़ालिब कर दो हमको इन पर,नहीं चलेगी हैवानी।
कांपते हाथ नाकाम हैं, दर्द के आंसू पोंछने में,
मज़ाक़ बना बुढ़ापे की अब हंसती है जवानी।
फ़रियाद रब से एक है, हर लड़की को मरियम बना दो,
और ख़त्म करो इन लड़कों कि कहानी।।